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ANOREXIA NERVOSA

एनोरेक्सिया नर्वोसा

What is Anorexia Nervosa, Causes, Signs And Treatment.खाने की रुचि न होना

एनोरेक्सिया नर्वोसा क्या है, कारण, संकेत और उपचार !

अरुचि / खाने की रुचि न होना (ANOREXIA) :-

पर्याय- आरोचक, अंग्रेजी में एनोरेक्सिया तथा सामान्य बोलचाल में खाना खाने की रुचि न होना।

परिचय – खाना खाने की इच्छा (रुचि) न होने को “अरुचि कहते हैं। इसको आरोचक

भी कहा गया है क्योंकि भोजन के ग्रहण करने में ही रुचि न हो वह अरुचि’ है। इसे ऐसे

भी कहा गया है कि भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन को खाने में असमर्थ हो तो वह अरुचि

कहलाती है।”

अथवा भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो. फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उत्तरे तो इसे ‘अरुचि की ही संज्ञा दी जाती है।

Anorexia Norvo

सामान्यतया यह विभिन्न रोगों में लक्षण रूप में प्रकट होने वाला रोग है, यह स्वतंत्र रूप से भी होता है।

ज्यादातर मरीजों में कब्ज चिकनाईयुक्त एवं कम रेशेदार भोजन के खाने से होती है। खाने के साथ कम मात्रा में पानी पीने से तथा शारीरिक कसरत (व्यायाम) के अभाव में आँतों की कार्यशीलता धीमी हो जाती है।

रोग के मुख्य कारण क्या है ?

शारीरिक कारणमानसिक अथवा आगन्तुक कारण

  • ज्वर, कब्ज, निमोनिया, चेचक खसरा मलेरिया आदि संक्रामक ज्वर।

  • आँत तथा आमाशय (आमाशयिक कलाशोथ, आमाशय कैंसर, आमाशयिक उपाम्लता) के विभिन्न रोग।
  • यक्ष्मा (TB) तथा अन्य चिरकारी रोगों में रोगी को प्राय अरुचि हो जाती है।
  • कुछ मरीजों में लम्बे समय तक बिस्तर पर रहना होता है, जैसे- हार्ट अटैक कूल्हे की हड्डी का हट जाना आदि। इनसे प्रायः अरुचि हो जाती है।
  • शोक भय, अतिलोभ, क्रोध एवं गंध के सेवन से भोजन में अरुचि हो जाती है।
  • हिस्टीरिया, अनिद्रा तथा अन्य मानसिक स्थितियों में भी भूख लगना प्रायः बंद हो जाती है।
  • अधिक चिंता एवं तनाव (Tension) से भी एख लगना अक्सर कम हो जाता है।

नोट-यकृत (Liver) तथा आमाशय की खराबी के परिणामस्वरूप मुख्यतः यह रोग होता है। याद रखिए-अरुचि में शारीरिक कारणों की अपेक्षा मानसिक कारणों का अधिक महत्व होता है !

  • आमांश का अधिक मात्रा में संचय (कॉन्स्टीपेशन) के परिणामस्वरूप भोजन में अरुचि होती है।
  • शरीर में ‘वर्क्स की उपस्थिति भी अरुचि का प्रधान कारण है।
  • विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स की कमी से भी भूख कम हो जाती है।

याद रखिए-

  • अधिक पौष्टिक आहार लेने तथा सारे दिन कार्य न करने से भी अरुचि हो जाती है।
  • एडीसंस, मिक्सीडीमा आदि ऐसे रोग है, जिनमें शरीर के अत्तर्गत सम्पादित होने वाली चयापचयी क्रियाएँ बहुत मंद हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप अरुचि हो जाती है !

अरुचि के प्रमुख लक्षण:-

  • रोगी को खाने में कोई रुचि नहीं रहती। यदि वह खाने बैठ भी जाए तो 2-4 कौर अथवा 1-2 रोटी खाकर उठ बैठता है और आगे खाने की अनिच्छा प्रकट करता है।
  • मुँह का स्वाद कसैला, छाती में शूल (वर्द) एवं पीड़ा होती है।
  • थोड़ा खाने के बाद पेट भरा-सा प्रतीत होता है।
  • रोगी को खट्टी-खट्टी या सूखी डकारें आती हैं।
  • पेट भारी मालूम पड़ता है और मुँह में पानी-सा भर आता है।
  • रोगी को अल्प श्रम से ही थकावट महसूस होती है।
  • चेहरा मलिन एवं खुष्क। किसी कार्य को न करने की इच्छा नहीं होती।
  • मुख में उष्णता एवं दुर्गंध की उपस्थिति।
  • हृदय के समीप अतिशय दाह एवं प्यास की अधिकता।
  • आहार के गले से नीचे उतरने में असमर्थता।
  • शरीर भार में पर्याप्त कमी।
  • दीर्घकालिक रोगी अनीमिक (रक्त की कमी) हो जाता है

याद रखिए- अरुचि के अधिकांश रोगी मानसिक विषमयता से ग्रसित रहते हैं।

रोग की पहचान कैसे करे ?

खाना न खाना, खाने के प्रति इच्छा न होना, भार में कमी, मलावरोध, बेचैनी आदि लक्षणों से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

रोग के परिणाम क्या होता है ?

रोग के अधिक समय तक चलते रहने और उचित चिकित्सा न करने से शरीर की रस, रक्त मांस आदि धातुएँ सूखने लगती हैं और उसका भार अत्यधिक गिर जाता है !

अपच को ठीक करने की चिकित्सा विधि:-
  • रोग के मूल कारण को दूर करें।
  • तत्पश्चात दीपन, पाचन (Stomachic & carminative) औषधियों की व्यवस्था कारे!
  • भय, चिंता, शोक आदि का निराकरण आवश्यक ।
  • मानसिक कारणों की उपस्थिति में शामक (Sedative) औषधियों का प्रयोग।
  • अजीर्ण आमाशय शोध की उचित चिकित्सा करें।
पथ्य एवं सहायक चिकित्सा क्या है और कैसे करे ?
  •  विविध प्रकार के लेह, चटनी रायता अचार आदि रुचिकर पदार्थ खाने को दें। लघु सुपाच्य मन पसंद पथ्य दें। गेहूँ अगहनी-चावल, मूँग पतली मूली, बैंगन, केला पपीता अंगूर, आम घी, लहसुन, सिरका, गौ दुग्ध, दही, म‌ट्ठा अदरख, काला नमक, स्वच्छ सौम्य एवं शांत वातावरण-ये सब पथ्य हैं!
  • आमाशय एवं मल के शोधन के लिए कैस्टर ऑयल दें। प्रत्येक अवस्था में कृमिनाशक औषधि अवश्य दें।

याद रखिए-  इस विकार में रोगी के शरीर में रक्त की पर्याप्त कमी हो जाती है। ऐसे रोगी में                    दीपन-पाचन औषधियों के साथ-साथ ‘लिवर-एक्स्ट्रेक्ट’ का प्रयोग आवश्यक है।

  • मसूड़ों और दाँतों से निकलने वाले रक्त की व्यवस्था करें
  • सप्ताह में एक बार उपवास रखने से क्षुधा में वृद्धि होती है औरअरुचि’ विकार नष्ट होता है।

मेडिकल (चिकित्सा) क्या है और कैसे करे ?

  • अरिस्टोजाइम (Aristozyme) अरिस्टो 2 चम्मच दो बार खाना खाने के आधा घंटे बाद।

अथवा बीकोसूल कैप्सूल (Becosules Cap) फाइजर 1 कैप्सूल दो बार खाने के बाद। अथवा बीकोसूल सिरप (Becosules Syrup)– ‘फाइजर एक चम्मच दो बार खाने के बाद।

  • बी. जी फॉस ( Phos) मेरिण्ड 15 मिली. (3 चम्मच) दिन में 3 बार भोजन से पूर्व। अथवा सेंटीबिनी (Sentevini) ‘सैण्डोज । 15 मि. ली (3 धम्मच) दिन में 3 बार भोजन से पूर्व।
  • बीकोजाइम सी फोर्ट (Becozyme C Fort) टेब, निकोलस पिरामल प्रोफाइलैक्सिस गोली रोजाना।
  • लियोजिन (Livogen) सीरप एलेनवरीज
  • इसके कैप्सूल भी आते हैं। मात्रा 1-2 कैप्सूल दिन में 3 बार। 15 मि. ली दिन में 3 तीन बार भोजन से पूर्व।
  • टेब कॉम्पलैक्स-बी (Complex-B) ग्लैक्सो 2-3 गोलियां प्रतिदिन भोजन के बाद दें।

नोट- इसका लिक्विड व फोर्ट टेब भी आती हैं। बी-कॉम्पलैक्स फोर्ट टेब. दिन में केवल एक गोली एक बार दें।

मेडिकल व्यवस्था-पत्र होता है ?

  • Rx टेबलेट सिप्लेक्टिन (Tab, Ciplectin) ‘सिपला  1 टिकिया दिन में 3 बार भोजन से पूर्व दें।


  • सिरप सिप-एल (Cyp-L) एल्वर्ड डेविड

    2 चम्मच दो बार प्रतिदिन खाने से 1/2 घंटा पहले।


  • प्रथम औषधि के बाद। एल्टोन सीरप (Altone Syrup) ‘एल्वर्ट डेविड

    2-3 चम्मच दिन में 2 बार दो-शाम।


  • एलजैड (Alzad) ‘मेरिण्ड 

    400 मिग्रा की 1 गोली रात को पहले दिन तत्पश्चात 15 दिन बाद।



  • जेन्टिल (Zentil) एस के एफ 1 टिकिया नित्य-3 दिन।


  • यूनीएंजाइम (Unienzyme) यूनीकेम 1 टेबलेट 2 बार नित्य खाना खाने के बाद।

अनुभूत चिकित्सा-

पेट के कीड़ों (राउण्डवर्म, हुकवर्म व्हिववर्म, थ्रेडवर्म एवं टेपवर्म) के लिए मेबिण्डाजोल (Mebendazole) देना चाहिए जैसे-

  1. टेबलेट वर्मिन ( Wormin) ‘कैडिला 100 मिग्रा. की 1 टिकिया दिन में 2 बार 5 दिन तक दें। अथवा सिंगल डोज में पेट के कीड़ों के लिए एल्बिन्डाजोल (Albendazole) देना चाहिए जैसे-एल्टेक (Altec), एन्थल (Anthel), सीजोल (Cezole), सीडाजोल (Cidazole) आदिदें।

         नोट- ये गोलियों सिंगल डोज हैं। यानी केवल एक गोली केवल एक ही बार शाम को खाना                        खाने के बाद दी जाती है।

         आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद पुनः दी जा सकती है।

  1. टेबलेट मीबोजोल, वर्मीनिल मेबेक्स आदि

        नोट- ये गोलियों 3 या 5 दिन दी जाती हैं।

      बीकोजाइम-सी फोर्ट (Becozyme-C Forte) निकोलस पिरामल 1 टिकिया दिन में 3 बार भोजन के बाद दें। ऊपर से 2-3 चम्मच बी.जी फॉस (B.G. Phos) पिलावें। बीकोसूल 1 कैप्सूल दोपहर शाम दें। या बीकॉम्लेक्स ‘ग्लैक्सों की 2 चम्मच दिन में 2 बार पिलायें।

रोगी को सप्ताह में 2 या 3 बार लिवर-एक्सट्रेक्ट को 2 मिली. की मात्रा में गांसपेशी इंजेक्शन रूप में दें।

अरुचि की लक्षणानुसार चिकित्सा (Symptomatic Treatment of Anorexia)

  1. यदि अरुचि किसी तीव्र अथवा चिरकारी रोग के कारण नहीं है तो –

टेबलेट सिप्लैक्टिन ‘साइप्रोहेप्टाडीन’ 1-2 टिकिया दिन में 3 बार भोजन से एक घंटे पूर्व दें।

अथवा ‘बीकोजाइम सीरप ‘रोशे की 2-3 बड़ी चम्मच दिन में 2-3 बार दें। अथवा इंजे ‘बीकोजाइम फोर्ट 2-4 मि.ली. माँस या नस में लगावें। कोर्स लगभग दस इंजेक्शन का है।

2. क्षुधा बढ़ाकर रोग काबू में लाएँ –
  • टेबलेट डायनावाल 5 मि.ग्रा. की। टिकिया दिन में एक बार नित्य 4 सप्ताह तक दें। बालकों में 1 मि. ग्रा. की 1 टिकिया दिन में एक बार दें। अथवा इंजेक्शन ‘ट्राईनर्जिक’ 1 मिली. का एम्पुल सप्ताह में 2 बार मांसपेशी में लगायें। कोर्स- कुल 6 इंजेक्शन पर्याप्त।

सावधान

  1. इस औषधि का प्रयोग तभी करें जब शरीर में कोई अन्य रोग न हो।
  2. प्रयोग काल में प्रोटीन युक्त पदार्थ अधिक मात्रा में दे

विशेषदुबले-पतले बालक तथा वयस्क इसके प्रयोग से हृष्ट-पुष्ट तथा मोटे हो जाते हैं।

(3)यदि अरुचि के साथ अजीर्ण भी हो-
  • टेबलेट डिस्पेप्टाल (नि नोल) इसकी 1-1 टिकिया दिन में 3 बार भोजन के बाद दें। अथवा यूनीएन्जाइम यूनीकेम इसकी 1-1 टिकिया दिन में 2 बार भोजन के बाद दें।

(4):-यकृत दोष तथा दूषित पित्त के कारण अरुचि में

  • नियो हैपाटेक्स बी. ई. इजेक्शन की 2 मि.ली मात्रा सप्ताह में 2 या 3 बार मांसपेशी में देते रहें। कुल 5 से 10 इंजेक्शन पर्याप्त। अथवा लिव-52 (Liv-52) सीरप हिमालया ड्रग्स 2 चम्मच दो बार प्रतिदिन। अथवा लियोटोन (Livotone) ‘ईस्ट इंडिया 1-1 कैप्सूल तीन बार प्रतिदिन।

याद रखिए- 2-4 ड्रम ब्राडी भोजन से पूर्व या पश्चात लेने से अरुचि दूर होती है।

(5):- यकृत की विकृति एवं लंबी बीमारी के बाद की दुर्बलता
  • सेप्टोल (Ceptal) Samir Remedies 10 मिली भोजन के बाद दिन में 2 या 3 बार दे|
(6):- अरुचि के साथ उत्पन्न रक्त की-
  • एपीटोल सैण्डोज 10 मिली टोनोफॉस (रैलीज) 10 मिली + विनोफिट सीरप (वॉकहर्डस) 10 मिली ऐसी 1 मात्रा दिन में 2 या 3 बार भोजन के बाद दें। अथवा फॉरफोटोन (सिपला) 5 मिली + लिवोजिन सीरप 10 मि. ली दोनों को मिलाकर दिन में दो बार भोजन से एक घंटे पूर्व दें। साथ ही टाका कम्वेक्स कैप्सूल 1-1 की मात्रा में भोजन के एक घंटे बाद दें। अथवा हेपटोग्लोबिन (Hepatoglobine) सीरप रेप्ठाकोस 2 चम्मच दो बार प्रतिदिन।
कैमोथिरेपी-
  • पेरीएक्टिन (MSD) 2 टिकिया न्यूरोविऑन (मर्क) । टिकिया मायडेक कैप्सूल (पी डी) 1-ऐसी एक मात्राा दिन में दो बार दें।
  • लूपीजाइम  (Lupizyme) सीरप लूपिन 10 मिली दिन में 2 बार खाना खाने के बाद दें।

अरुचि में सेवन कराने योग्य ऐलो. पेटेंट कैप्सूल

  1. विप्रेक्स (Viprcx) बेलानोवा            (1-1 कैप्सूल दिन में 2 बार।)
  2. लिवोजिन (Livogin) ‘एलनवरीज’    (1-2 कैप्सूल दिन में 2 या 3 बार भोजन से                                                                              पूर्व।)
  3. लिव-52 (Liv-52) हिमालया ड्रग्स’   (1-1 कैप्सूल तीन बार प्रतिदिन।)
  4. एरिस्टोजाइम (Aristozyme) एरिस्टो    (1 कैप्सूल दिन में 2 बार भोजन के तत्काल                                                                                          बाद।)
अरुचि नाशक प्रमुख ऐलोपैथिक पेटेंट पेय
  1. बेयर्स टॉनिक (Bayer’s Tonic) ‘बेयर   

(15 मिली. (3 चम्मच) दिन में 3 बार। बालक 5-10 मि.ली. दिन में 3 बार।)

2.  सिप-एल. सीरप (Cyp-L. Syrup) एल्वर्ड डेविड’   (-2 चम्मच दो बार खाने से आधा घंटे                                                                                                            पहले।)

3. सिप्लेक्टिन (Ciplectin) सिपला – (5-10 मि.ली दिन में 3 बार।)


  • निषेध ग्लाइकोमा तथा मूत्रा वरोध के रोगी में इसका प्रयोग न करें।

4. सिप्रोबाल (Cyprowal)  “बैलेसी –  (10 मि.ली दिन में 2 या 3 बार।)

5. सिडाइन (Sydine) सीरप सी एफ एल  – (बालक 5-10 मिली दिन में 2 या 3 बार।)

6. एपीटामिन (Apetamin) ‘टेबलेट्स  – (10 मि.ली दिन में 2 या 3 बार।)

7. निओगाडीन इलेक्जिर रेप्टाकोस  – (15 मि.ली दिन में 3 बार।)

8. नर्विटोन (Nervitone) एलेम्बिक – (15-30 मि.ली. दिन में 2 बार भोजन से पूर्व दे।)

9.  पेडिक सीरप (Pedic Syrup) स्टेडमेड – (10-15 मिली दिन में 2 बार भोजन से आधा घटे पूर्व।)

(वयस्क 5-10 मि.ली दिन में 3 बार। बच्चों के लिए ड्रॉप्स आती है। इन्फैंट 5 बूँदै दिन में दो बार दूध या फलों के रस के साथ दे ।)

10.  प्रेक्टिन सीरप (Practin Syrup) ‘मेरिण्ड’ – (10-15 मि. ली दिन में 3 बार।)

  • निषेधग्लाइकोमा मूत्र निरोध तीव श्वास आदि रोग में इसका प्रयोग वर्जित है।

11. फॉस्फोटोन (Phosphotone) “सिपला”  – (5 मि.ली. पानी के साथ दिन में 2 बार भोजन से पूर्व और 1 बार भोजन के बाद प्रयोग-इस क्रम से है।)

12.   पेण्टावाइट (Pentavite) ‘निकोलस’- (15 मि. ली. दिन में 2 बार।

  • बालकों को आधी मात्रा। 15 मि ली दिन में 2 बार।

13. परनेक्सिन (Pernexin) जर्मन रेमेडीज – (15 मि. ली. दिन में 2 बार। )

14. एल्टोन (Altone) एलवर्ट डेविड – (10-15 मिली. दिन में 2 या 3 बार।)

  • याद रखिए- इससे भूख बढ़कर अरुचि दूर होती है।

15. एप्टीवेट सिरप (Aptivate) लूपिन’ – (10 मि.ली. दिन में 2 बार दें।)

16. पेरीटॉल सिरप (Perital) ‘थेमिस – (4 मि.ली दिन में 2 बार दें।)

17. प्रैक्टिन-ई.एन (Practin-EN) मेरिण्ड – (4 मि.ली दिन में 2 या 3 बार दें।)

18. लूपीजाइम (Lupizyme) सिरप ‘लूपिन – (10 मि.ली. दिन में 2 बार खाना खाने के बाद दे।)

19. बीकोजाइम (Becozyme) ‘रोशे’ – (10-15 मि.ली. दिन में 3 बार।)

20. अरिस्टोजाइम सिरप (Aristozyme syrup) ‘अरिस्टो’ – (2-2 चम्मच दो बार खाने के आधे घंटे बाद।)

21. हिपेटोगार्ड फोर्ट सिरप (Hepatogard forte Syrup) ‘थेमिस फार्मा – (2-2 चम्मच दो बार प्रतिदिन।)

22. पोलीबियॉन सिरप (Polybion Syrup) मर्क – (2-2 चम्मच दो बार खाने के बाद प्रतिदिन।)

अजीर्ण तथा अग्निमांद्य में दिए पेटेंट पेय भी अरुचि में लाभकारी हैं।

अरुचि की आधुनिक पेटेंट इंजेक्शनों द्वारा चिकित्सा

  1. निओ-हेपाटेक्स (Neo-hepatex) बी ई  – (2 मि. ली. मांस में एक दिन छोड़कर लगावें कोर्स 5 से 10 इंजेक्शन पर्याप्त।)
  2. बीप्लेक्स फोर्ट (Beplex forte) ‘एएफडी’ (2 मि. ली मास या नस में।)
  3. लिवर एक्स्ट्रेक्ट विद विटा बी कॉम्पलेक्स टी सी. एफ’- (2 मि ली. हर तीसरे दिन मास में लगावें। कोर्स- 10 इंजेक्शन।)
  4. बीथाडॉक्सिन-12 (Bethadoxn-12) बीई- (2 मि. ली मास में दूसरे या तीसरे दिन। कोर्स- 10 इंजेक्शन।)
  5. परकोर्टन (Percorten) सीबा- (5 मि.  ग्रा. हप्ते में २ या ३ बार मांसपेशी में लगावे )
बहुत काल तक रोग के कारण उत्पन्न हुई अरुचि की अनुभूति चिकित्सा

1.     प्रातः

2.     प्रातः 10 बजे एवं सायं 5 बजे

3.     भोजन के बाद

4.     दिन के 12 बजे

5.     1 दिन छोड़ कर या हफ्ते में 2 बार

  शरीर पर तेल मालिस।

 ‘बी जी फॉर्स 2 चम्मच भोजन से पूर्व।

‘हेप्टाग्लोबिन – 2 चम्मच।

डायजीन- 1 टिकिया रोजाना 4 सप्ताह तक।

लिवर एक्सट्रेक्ट विद बी कॉम्पलेक्स 2 मि.ली. मास में। कोर्स-10 इंजेक्शन पर्याप्त ।

ये ब्लॉग सिर्फ जानकारी के लिए है कोई भी दवा का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य संपर्क करे !
One thought on “अरुचि / खाने की रुचि न होना”

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