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परिचय-
किसी गरम तपती हुई वस्तुओं के सम्पर्क द्वारा शरीर की त्वचा और अन्दरूनी ऊतकों के प्रभावित होने को जलना (Burns) कहते हैं।
जलने से बचाव के उपाय और उपचार की सम्पूर्ण जानकारी इस ब्लाग के मध्यम से दे रह हू !
जलने के कारण और लक्षण:-
जलने के कारण और लक्षण निम्न हो सकते है जो मैंने नीचे दिया ही अधिक जानकारी के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़े…
जलने के कारण:-
जलने के के कारण कुछ इस प्रकार से भी हो सकते है
- अज्ञानता (Ignorance)
- असावधानी (Carelessness)
- उपेक्षा (Negligence)
- सामानों के संरक्षण एवं रख-रखाव की गलत आदत्त (Bad Maintenance Practice) चाहे कुछ अन्य कारण भी हो सकते है-
- अग्नि की ज्वाला से।
- गरम धातु के टुकड़े।
- गरम दूध, चाय, जल, घी, तेल एवं वाष्प से।
- एक्स-रे एवं रेडियम चिकित्सा।
- इलेक्ट्रिक करेन्ट से।
- टेरिलीन, नाइलोन आदि के वस्त्रों में आग लगने से।
- दहेज उत्पीड़न की आग से जलना।
- किन्हीं आक्रोश की असहिष्णुता से होने वाले आत्मदाह जैसी अत्यधिक दर्दनाक दग्ध की दुर्घटनाओं से।
जलने के लक्षण:-
जलने का दो प्रकार होता है (1):- हीन दग्ध (Minor Burns, (2):- बहुल दग्ध (Major Burns)
हीन दग्ध (Minor Burns) के लक्षण:-
- त्वचा जलने से प्रभावित एवं झुलसी हो किन्तु नष्ट ना हुआ हो।
- चिकित्सा की आवश्यकता ना हो।
- यदि विस्तृत भाग प्रभावित न हुआ हो तो कोई उपद्रव भी नहीं।
बहुदग्ध के विशिष्ट लक्षण (Specific Symptoms of Major Burns)-
- इसमें शरीर के तरल (Fluids) का ह्रास।
- तरल निकलता रहता है और उसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
- प्रोटीन तथा तरल की कमी से स्तब्धता के लक्षण प्रकट होते हैं।
- इसमें शरीर में स्थिति धातुएँ भी नष्ट हो जाती है ।
- बार- बार प्यास एवं मूर्च्छा का आना ।
- उसमें क्रोध उत्पन्न होकर वह भाग अलग हो जाता है और व्रण मात्र शेष रह जाता है जिसका रोहण विलम्ब से होता है।
- विकिरण ऊर्जा जलन (Radiant heat burn) सूर्य की किरणों या अल्ट्रावाइलेट किरणों से होती है। चूँकि यह जलन शरीर कीसतह पर काफी फैले हुए क्षेत्र में होती है इसलिए गम्भीर स्थिति पैदा हो सकती है।
जलन से प्रभावित हुए क्षेत्र की त्वचा लाल, फफोलेयुक्त या जलन की गम्भीरता के अनुसार अन्दरूनी ऊतक बाहर की ओर खुले हुए दीख सकते हैं जलने का सबसे मुख्य लक्षण गम्भीर एवं असहनीय दर्द है। यदि जलन अत्यधिक गम्भीर है, तो आघात के लक्षण दिखाई देंगे। ऐसी स्थिति में कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है क्योंकि शरीर से द्रव की अत्यधिक हानि हो जाती है।
कभी-कभी जलन के निम्न तीनों प्रकार एक साथ दिखाई देते हैं-
- प्रथम श्रेणी की जलन (First Degree of Burn)- इसमें केवल त्वचा ही प्रभावित होती है और लाल दिखाई देती है। फफोले नहीं उठते।
- द्वितीय श्रेणी की जलन (Second Degree of Burn)- इसमें त्वचा पर फफोले उठआते हैं और त्वचा के नीचे स्थित ऊतक प्रभावित हो जाते हैं।
- तृतीय श्रेणी की जलन (Third Degree of Burn)- इसमें त्वचा के क्षतिग्रस्त होने के साथ ही अन्दरूनी ऊतक भी प्रभावित हो जाते हैं।
- चतुर्थ श्रेणी की जलन (Fourth Degree of Burn)- इसमें त्वचा व ऊतकों की गम्भीर जलन होकर क्षतिग्रस्त ऊतकों की गहराई अस्थि तक पहुँच जाती है। प्रभावित खुले क्षेत्र काले एव जले हुए दिखाई देते हैं।
जलने के पहचान और परिणाम
जलने के पहचान और परिणाम कुछ इस प्रकार के हो सकते है-
जलने के पहचान:-
लक्षणों के आधार पर बहुत आसान होता है पहचान करना जैसे रोगी या या फिर उसके साथ वाले खुद बताते है या फिर देख कर भी पता लगाया जा सकता है जैसे जलने का इतिहास फफोले और घाव का हो जाना, बहुत जोर जोर से दर्द होना प्रमुख पहचान है या फिर शाक का भी लक्षण होंसकते ये कुछ देख कर और सुन कर पहचाना जा सकता है।
जलने के परिणाम:-
- वृद्धों और बालकों में जलने के परिणाम अच्छे नहीं।
- शरीर के बाह्य भाग का आधे से अधिक जल जाना घात।
- दग्ध जितना अधिक गहरा होता है उतना ही अधिक गम्भीर / घातक होता है।
- मुख मण्डल, कमर के भाग में एवं धड़ का जलना हाथ-पैर के जलने की अपेक्षा अधिक घातक होता है।
- रासायनिक और बिजली के कारण उत्पन्न होने से जलन के परिणाम अधिक भयंकर होता है।
पुरुषो के अलावा औरते अधिक संख्या मे जल जाती है य फिर कुछ ऐसे समाज के क्रुर लोग (सास-ससुर, ननद देवर) के द्वारा किसी कारण के कारण जला दिया जाता है और उचित इलाज न मिलने पर मौत तक हो जाती है !
शरीर के जलने के अनुसर १०० भागो मे विभजन:-
अगर शरीर में सिर जले तो उसको 7%, दोनो हाथ जले तो उसको 18%, दोनो पैर जले तो उसको 38%, धड (उदर और वक्ष) जले तो उस्को 18%,पीठ जले तो 20% इस तरह जलने के अनुशार अपने शरीर का विभाजन किया जाता है।
याद रखिये:- यह अनुमान लगाया जा चुक्न है कि यदि शरीर की सतह का 1/10 चाँ भन या इससे अधिक भाग जलने से प्रभावित हो गया है तो जीवन को खतरा रहता है। आरम में त्वरित एव उचित रूप से प्राथमिक सहायता करने तथा बाद के अच्छे चिकित्सकीय उपचार से त्वचा के अत्यधिक जले हुए क्षेत्र या करीब 50 प्रतिशत जलने वाले रोगियों का जीवन सुरक्षित बच सकता है।
उपद्रव:-
- दाह का विस्तार गहराई अधिक होने से शॉक (Shock) उत्पन्न होता है एवं हृदय की गति बन्द होकर मृत्यु की सम्भावना होती है।
- ज्वर, दाह प्यास की अधिकता एव मूर्च्छा होना-ये विशेष उपद्रव हैं।
- यदि दग्ध सिर वक्ष और लदर आदि मर्म स्थानों पर हो तो मस्तिष्कावरण शोथ, फुफ्फुसावरण शोथ, न्यूमोनिया आदि उपद्रव सत्पन्न होते हैं।
- दग्ध, स्थान में जीवाणुओं के उपसर्ग से विसर्प, टिटेनस आदि उपद्रव उत्पन्न होते हैं।
- व्रणरोपण के पश्चात् सम्बद्ध स्थान में सकोच एवं कुरूपता हो जाती है।
- व्रण वस्तु (स्कार-Scar) ऊतकों में कार्सीनोमा हो जाता है।
आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी निर्देश-
- दर्द कम करना।
- संक्रमण की रोकथाम करना।
- यदि आघात की स्थिति हो तो तुरन्त उसकी प्राथमिक सहायता करना।
- यदि किसी दुर्घटना में आप जलते हुए व्यक्ति को देखें तो स्वयं सुरक्षित होकर उस व्यक्ति को तुरन्त जमीन पर लेटाएँ यदि सम्भव हो तो जलता हुआ अंग ऊपर की ओर रखें ताकि आग, की लपटें शरीर के आस-पास न फैलें और उस व्यक्ति को कोई मोटा कपड़ा या कम्बल उढ़ाकर आग बुझाने का प्रयत्न करें।
- यदि शरीर के किसी अंग पर मामूली जलन है तो उस अंग को तुरन्त ठंडे पानी में डुबोकर रखें। इससे दर्द में कमी होगी और ऊतकों के अंदर पहुँची गर्मी में कमी आएगी।
- अब जलन के घावों के अनुसार उसकी ड्रेसिंग करें। शुष्क विसंक्रमित गॉज, कॉटन, मरहम (सोफ्रामाइसिन / फ्यूरासिन) आदि का उपयोग करें क्योंकि इसके रेशे घाव में चिपक जाते हैं।
- यदि जले हुए घावों पर कोई वस्तु या कपड़े चिपके हुए हैं तो उन्हें खींच कर न निकालें। आस-पास के कपड़ों को साफ कैंची से काटकर अलग करना चाहिए।
- इसी दौरान यदि रोगी होश में है तो 10-10 मिनट के अन्तरालों पर मुँह द्वारा द्रव पदार्थ दे सकते हैं। परंतु द्रव की अधिक मात्रा न दें। इससे उल्टियाँ होने लगती हैं।
- दग्ध के स्थान पर टैनिक एसिड का कोई लेप न लगाएँ।
- जले पर घी और मक्खन न लगावें, क्योंकि इनर्के छुड़ाने पर कठिनाई होती है एव सक्रमण होने की पर्याप्त सम्भावना रहती है।
- व्यापक दग्ध पर बोरिक एसिड का कोई मरहम न लगावें।
- यदि दग्ध स्थान पर अधिक फफोले हों तो उनके काटने की उचित व्यवस्था न होने पर उन्हें स्वयं फोड़ना ठीक नहीं।
दग्ध की तात्कालिक / आपातकालीन चिकित्सा-
- सर्वप्रथम मॉर्फीन का इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन दें।
- जले भाग को स्वच्छ वस्त्र से ढक दें और यदि बंधन योग्य (Suturing) हो तो व्रणबन्धन करें।
- यदि रोगी के कपड़ों में आग लगी हो और पास के कोई न हो तो जमीन पर लेटकर करवटें लेनी चाहिए।
- आग बुझाने के लिए कम्बल आदि को लपेट दें। वैसे आग बुझाने के लिए पानी एक प्रभावशाली तथा आरामदायक उपाय है।
- शीतलता का प्रयोग दर्द एव जलन के लिए आवश्यक ।
- नगर या मकान में आग लगी हो तो तत्काल फायर ब्रिगेड को सूचित करें।
- रोगी को एकान्त स्थान में लिटाये रखें।
- घाव को जीवाणुविहीन ड्रेसिग से ढककर रखें।
- रासायनिक दग्ध को पर्याप्त मात्रा में जल से धोएँ।
- अधिक जलने पर रोगी को अस्पताल में भर्ती करा दें।
- दर्द को दूर करने के लिए पैथीडीन या कोई एनाल्जेसिक जैसे-डाइक्लोनेक उपयुक्त मॉर्फीन इजेक्शन दें।
- अंगों को साबुन के पानी या सेवलॉन से साफ करके शुद्ध वैसलीन या एंटीबायोटिक युक्त गॉज रखें या ड्रेसिंग को दूसरे दिन बदलें।
- ड्रेक्सट्रोज सैलाइन आई. वी.।
- टेटवैक (Tetavac) का इट्रामस्कुलर इजेक्शन।
- आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन सुँघाएँ।
- गम्भीर दग्ध में एव 25% से अधिक जलने पर रुधिराधान (Blood transfuion) या प्लाज्मा को शिरा द्वारा ड्रिप विधि से दें।
- 25% में से अधिक जलने पर ब्लड ट्रान्सफ्यूजन ।
- रक्त मिलने की व्यवस्था होने तक ग्लूकोज सैलाइन को शिरामार्ग द्वारा ड्रिप विधि से दें।
- सिफेलेक्सीन कैप्सूल दिन में 4 बार।
- यदि किसी बालक के शरीर का बाह्य स्तर 10 प्रतिशत से अधिक जल गया है अथवा युवक में 15% से अधिक भाग जल गया है तो प्लाज्मा, ड्रेक्स्ट्रान, डेक्स्ट्राबेन अथवा किसी प्लाज्मा के यौगिक का तत्काल प्रयोग।
- अधिक दग्ध पर ‘डेकडान’ (Deedan) या बेटनीसोल’ का इजेक्शन प्रतिदिन । रोगी को पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी डी एव बी-कॉम्पलेक्स देते रहना चाहिए।
- सक्रमण से बचने के लिए व्रण को स्टेरेलाइज्ड वस्त्र से ढककर रखना।
- जले हुए स्थान को ‘डेटॉल आदि एटीसेप्टिक की सहायता से साफकर विकृत तन्तुओं को कैंची से काटकर अलग कर दें। तत्पश्चात् पेनिसिलीन, सिबाजोल बर्नोल या सेटावलॉन को किसी स्वच्छ वस्त्र पर फैलाकर व्रण पर रख दें।
- अल्प दग्ध में बर्नोल, सेवलॉन, टेनोफेक्स जैली, विटाप्लेक्स या सुप्रामाइसीन लगानाचाहिए।
- जलने के 24 घटे के भीतर ही रोगी को ए टी एस या टेटवेक (Tetavac) कम इट्रामस्कुलर सूचीवेध देना चाहिए। जिससे आगे टिटेनस होने की सम्भावना न रहे। साथ में टिटेनस टॉक्सॉइड का मांसपेशीगत् प्रयोग करना चाहिए। 4-6 सप्ताह के अन्तर पर फिर से सूचीवेध देना चाहिए।
आजकल Burns की चिकित्सा निम्न प्रकार से करते हैं-
जलने के तुरन्त प्राथमिक उपचार-
- रोगी को तत्काल जलने वाली जगह से हटा दें।
- जले हुए भाग पर ठडे पानी की पट्टी रखें। इस प्रक्रिया को हर 2-3 मिनट पर दोहरायें। इससे जलन व दर्द में आराम मिलता है।
- बिजली से जलने पर मेन स्विच जल्दी से बन्द कर दें।
- रोगी की नब्ज व सांस का परीक्षण करें।
- रासायनिक तत्वों (Chemicals) से जलने पर तुरन्त रसायन को साफ कर दें। और पानी से उस भाग को भली प्रकार धो दें।
- रोगी को तुरत I/V ड्रिप के द्वारा सेलाइन देना शुरू कर दें।
- घाव को भली प्रकार साफ कपडे से ढक कर रोगी को कम्बल में लपेट दें।
- जल्दबाजी में कोई भी क्रीम या दवा घाव पर न लगायें।
- फफोलों को फोड़ना नहीं चाहिये।
- रोगी को दर्द निवारक औषधि दें।
- संक्रमण से घाव की भली-भांति रक्षा करें।
आपातकालीन चिकित्सा-
- रोगी को आरामपूर्वक गर्न कमरे में लिटायें।
- जलन व दर्द की स्थिति में बर्फ के पानी की पट्टियों को घाव पर रखें।
- नींद व दर्द के लिये इंजे. पेन्टाजेसिक या पैथीडीन (Pethidine) दिया जाता है।
- इजे. एण्टी टिटेनस (टेटवेक-Tetavac) 0.5 मि.ली. I.M. दें।
- रोगी को तुरन्त ऑक्सीजन दें।
- रोगी में पानी इलेक्ट्रोलाइट व प्रोटीन की हुई कमी को प्लाज्मा, प्रोटीनयुक्त सोल्यूशन या डेक्स्ट्रान 110 देकर पूरा करें। इसके साथ में रोगी की हालत के अनुसार सेलाइन रिंजर लेक्टेट या ग्लूकोज दिया जाता है।
- जरूरत पड़ने पर रोगी को ताजा खून भी चढ़ाया जाता है।
- जली हुई त्वचा को काटकर निकाल दें।
- रोगी को ब्रॉड स्पेक्ट्रम एण्टीबायोटिक्स जैसे पेनिसिलीन (Penicillin) या जेण्टामाइसिन 5-10 दिनों तक दें।
- यदि रोगी मुँह से लेने की स्थिति में हो तो उसको मुँह द्वारा थोड़ा पानी या दूध दिया जा सकता है।
- जले हुए भाग की भली प्रकार सफाई करके उसकी सिल्वर सल्फाडाईजिन क्रीम से या ऑक्ल और एण्टीबायोटिक में बनी पट्टियों से ड्रेसिंग करें।
- रेत, मिट्टी व जले हुए कपडे को घाव पर से सावधानीपूर्वक साफ पानी से हटा दें।
- रोगी की ड्रिप में मल्टीविटामिन्स आवश्यक मात्रा में मिला दें।
- गहरे जख्मों को जल्दी से ठीक करने के लिये त्वचा निरोपण (Sking grafting) किया जाता है।
- विकृत भाग पर त्वचा निरोपण (Skin grafting) गम्भीर क्षत की चिकित्सा में की जाती है। इसे यथाशीघ्र जब क्षत कच्चा और ग्रेनूलेटिंग स्थिति में हो तभी उस पर त्वचा निरोपण कर देना चाहिए। कुरूपता ठीक करने के लिए योग्य सर्जन इस विधि का आजकल अधिकतम प्रयोग कर रहे हैं।
- दग्घ की नवीन और उत्तम चिकित्सा आजकल बन्धन रहित विधि मानी जाती है। जिसमें संक्रमण का ध्यान रखते हुए व्रण स्थान को स्वच्छ कर सल्फोनामाइड एवं नीवासल्फ पाउडर छिड़कर खुला छोड़ देते हैं। इससे व्रण शीघ्र भरता है। एतर्द जेन्सियन वायोलेट, एक्रेपलेबीन और ब्रिलिएन्ट ग्रीन का बनाया हुआ योग ‘पेंट ऑफ क्रिस्टल वायोलेट कम्पाउण्ड’ का भी प्रयोग होता है।
महत्वपूर्ण सूचना:-
किसी तपती हुई चीज से अगर हाथ पैर या पूरा शरीर जल जाता है अगर थोड़ा जला हो तो उसको स्वयं घरेलू उपचार से ठीक किया जा सकता है या फिर अगर बहुत ज्यादा जल चुका हैनपुरा शरीर तो जल्द से जल्दी किसी अच्छे हॉस्पिटल में अच्छे डॉक्टर को दिखाएं और मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती कराए और मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद।