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पर्याय- 

सूजाक, औपसर्गिक मेह, आगन्तुक नेह, व्रणमेह, उष्णवात, भूशोष्णवात्, गोनोमेह, पूयमेह।

अग्रेजी में इसे गोनोरिया तथा यूनानी में ‘सोजाक’ या ‘सुजाक‘ कहते हैं।

रोग परिचय-

यह एक तीव्र स्वरूप का औपसर्गिक (Infectious) रोग है, जिसमें मूत्र के साथ पीव का स्राव एव मूत्र सस्थान से शोथ के लक्षण होते हैं। इसमें पुरुष के मूत्र मार्ग तथा स्त्री के योनि मार्ग से पीव निकलता है।

रोग के कारण-

यह रोग “नाइसीस्यिा गोनोराई” नामक जीवाणु द्वारा होता है। जीवाणु स्त्री और पुरुष के मूत्र मार्ग को संक्रमित (Infected) करता है। है।

  • यह जीवाणु ‘कॉफी के बीज’ अथवा मनुष्य के गुर्दे की शक्ल के अत्यन्त सूक्ष्म जीव होते हैं।

सूजाक
सूजाक

इस रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ सम्भोग करने पर ये जीवाणु शिश्न के अंदर मूत्र मार्ग में घुस जाते हैं और अपनी संख्या में असाधारण रूप से वृद्धि करते हुए मूत्र नलिका को खाने लगते हैं, जिससे पीव बनने लगती है। रोगी व्यक्ति के साथ समागम करने के 10-12 दिन के अदर ही इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

  • इस रोग के कारण दो बिन्दुओं के सदृश्य आकार वाले जीवाणु ‘गोनो – कोकस’ हैं

याद रहे- सुजाक (पूयमेह) रोग से आक्रात स्त्री के साथ सम्भोग करने से स्त्री से पुरुष को तथा पूयमेह से ग्रस्त पुरुष के साथ मैथुन करने से इस रोग का संक्रमण हो जाता है।

मूत्र मार्ग से पीव का स्राव होने के कारण इस रोग को ‘पूयमेह’ कहते हैं।

सुजाक के लक्षण सामान्य लक्षण :-

नये रोग में-

  • क्षोभ के कारण बार-बार लिंग का उत्थान।
  • लिंग के अग्र भाग में कण्डू एवं मूत्र त्याग के समय कष्ट।
  • धीरे-धीरे शिश्न मणि पर लाली एवं शोथ की उत्पत्ति।
  • मूत्र त्याग के समय असह्य पीड़ा एव दाह।
  • पुनः पुनः मूत्र का वेग होता है।

  • शिश्न तन जाता है तथा उससे ‘स्राव आने लगता है।


  • कभी-कभी शोथ के कारण मूत्र मार्ग से रक्तस्राब।
  • कुछ केसिस में पीव अदर ही सूखकर मूत्र मार्ग असाधारणतया अवरुद्ध ।
  • मूत्रपथ का छिद्र संकुचित हो जाता है।
  • मूत्र दाह के साथ दो धाराओं में आता है।
  • हल्का बुखार, जाडा अथवा कपकपी एवं सिर दर्द का मिलना।

  • रात्रि में लिंग के अधिक कड़ापन होने से नींद न आना।


  • पेशाब साफ नहीं आता है और बूंद-बूंद कर होता है।

रोग के पुराने होने पर-

  • जलन एव पीड़ा में कमी। पर पीव का स्राव जारी रहता है।
  • पीव गोंद की तरह सफेद एव लसीला।

  • कुछ केसिस में पीव आना बद / अथवा उसका कम मात्रा में आना। कुछ समय बाद उसका पुनः चालू होना।


नोट- यह क्रम महीनों अथवा वर्षों तक चलता रहता है।

याद रहे– यह रोग उपदश (गरमी या आतशक) का सहयोगी है। अतर केवल इतना है कि उपदंश में ‘लिगेन्द्रिय’ की ‘सुपारी के ऊपर घाव होते हैं।

रोगों के विशिष्ट लक्षण-

पुरुषों में तीव्र सुजाक-

  • मूत्र नली में पीड़ा / तत्पश्चात् मूत्र मार्ग से पीवयुक्त स्राव आता है जो बाद को ‘Frankly Purulent’ में बदल जाता है।
  • 10 से 14 दिन तक जिन रोगियों की चिकित्सा नहीं की जाती, उनकी मूत्र नली में शोथ (पोस्टीरियर यूरेथ्राईटिस) उत्पन्न हो जाता है ।
  • सिर दर्द, Melaise, तीव्र नाड़ी तथा बुखार।
  • मूत्र नली में अवरोध जो इसका प्रमुख उपद्रव है।

स्त्रियों में सुजाक-

  • इसमें गर्भाशय, गर्भाशय मुख बर्थोलिन ग्लांड्स तथा मूत्र नली प्रभावित होती है।
  • कमर में दर्द।
  • बालिकाओं में योनि तथा योनिद्वार शोथ मिलता है।
  • निम्न उदर के दोनों ओर पीड़ा एवं बुखार ।
  • श्रोणि परीक्षा में दोनों पार्श्वों में दाब वेदना। मूत्र बार-बार तथा पीवयुक्त।

बालकों में – बुखार से पीड़ित महिलाओं में उत्पन्न बच्चों में नेत्राभिष्यन्द (Opthelmin Neonatorum) की आशंका ।

रोग निदान (Diagnosis):-

  • अवैध मैथुन का इतिहास रोग निदान में सहायक होता है।
  • उपसर्ग के 3-7 दिन के अदर मूत्र त्याग में जलन एव पीडा।
  • मूत्र मार्ग से विशेष प्रकार के पीव का स्राव रोग निदानं में सहायक।
  • पूय परीक्षा में जीवाणु विशेष की उपस्थिति (अन्त कोषीय युग्म रूप में)।

वक्तव्य- उपरोक्त लक्षण एवं चिन्ह रोग निदान में सहायक होते हैं।

सुजाक का रोगी जब चिकित्सा में आये तो उसके मूत्र मार्ग से निकलने वाले मवाद को तुरंत लेबोरेटरी भेजकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उसे इस रोग के साथ सिफिलिस तो नहीं लग गई है।

याद रहे- यदि रोगी के बयान से पता लगे कि रोगग्रस्त वेश्या से सम्भोग करने के बाद उसने अपनी पत्नी से भी सम्भोग किया है तो पति और पत्नी दोनों की चिकित्सा आवश्यक है ताकि भविष्य में एक-दूसरे को रोग न लगे।

सूजाक
सूजाक

रोग के उपद्रव (Complications):-

पुरुषों में-
  • मूत्र मार्ग संधि शोथ ।
  • शिश्नमणि शोथ ।
  • अष्ठीला रोग।
  • शिश्न विद्रधि।
  • वस्ति शोथ ।
  • वृषण शोथ 
महिलाओं में-
  • भगोष्ठ शोथ ।
  • मूत्रमार्ग शोथ ।
  • योनि शोथ ।
  • गर्भाशय ग्रीवा शोथ।
  • गर्भाशय शोथ ।
  • उदर कला शोथ।
  • बीज ग्रंथि शोथ ।
  • मासिक धर्म के विभिन्न विकार।
  • गर्भवती होने पर गर्भस्राव।

वक्तव्य– यह एक हठीला रोग है किन्तु घातक नहीं, पर कठिनता से ठीक होता है। प्रारंभ में यदि इसकी उचित चिकित्सा न की गई तो रोग आजीवन बना रहता है।

  • रोग का संक्रमण स्त्री-पुरुष दोनों में संपूर्ण प्रजनन अंगों को विकारग्रस्त कर देता है।
  • उदरावरण तथा नेत्र भी इसके संक्रमण से भयंकर रूप से ग्रस्त हो सकते हैं।

इससे बचने के उपाय:-

  • मैथुन सर्वथा त्याग।
  • वैश्या तथा व्यभिचारिणी स्त्री के साथ सम्भोग भूलकर भी न करें।
  • गलती हो जाने (इन्फेक्शन लगने) पर  साबुन अथवा ‘सेवलोन‘ लोशन से जननेन्द्रिय को साफ कर पोटाशियम परमैंगेनेट (1: 5000) घोल कर मूत्र नली को साफ कर 2% के प्रोटार्गल के घोल अथवा ‘बीटाडीन’ का घोल की 20-30 बूँदें प्रविष्ट कराके 5-7 मिनट रोके रखें। साथ ही ‘औरीप्रिम’ की 1 टिकिया दिन में 2 बार खिलाते रहने से सुजाक होने का डर नहीं रहता।

आनुषांगिक चिकित्सा:-

  • रोगी को बिस्तर पर विश्राम दें।
  • दौड़ना, नाचना, साईकिल चलाना आदि का त्याग।
  • दूध, नारियल जल तथा सोडावाटर पिलावें।
  • मलावरोध की स्थीत में ‘मृदुरेचक’ की व्यवस्था ।
  • रोगी को कई बार 4 लीटर जल + 1 लीटर कच्चा दूध मिलाकर पिलावें।
  • रोगी को प्रतिदिन स्नान आवश्यक।

सुजाक रोगी के लिए पथ्य:-

  • शीघ्र पचने वाला हल्का एवं ठंडा भोजन च दूध, डबल रोटी, दूध में पकाया जौ का दलिया, मूंग की दाल, खिचड़ी एवं पतली चपाती।
  • हरे शाकों में पालक, बथुआ, तोरई, घिया।
  • दूध की लस्सी और नींबू का शर्बत हित- कारी है।

सुजाक रोगी के लिये अपथ्य:-

  • चाय, कॉफी, गरम मसाले तथा माँस- मछली का सेवन, चटनी, अचार, लाल मिर्च, शराब गुड़-तेल आदि से बनी चीजें अपथ्य हैं।

सुजाक चिकित्सा (Treatment of Gonorrhoea):-

  • प्रोकेन पेनिसिलीन 3-5 मैगा यूनिट मासपेशीगत् केवल 1 बार।
  • कैम्पिसिलीन 3-5 ग्राम विभाजित मात्राओं में। एमोक्सीसिलीन 3 ग्राम + प्रोवेनीसिड 1 ग्राम
  • टेट्रासाइक्लीन 0.5 ग्राम दिन में 4 बार 7 दिन तक। डोक्सीसाइक्लीन 100 मि. ग्रा. दिन में 2 बार 5 दिन तक। अथवा स्पेक्टीनोमाइसिन 2 ग्राम आई. वी. (IV)।
  • सेफोक्सीटिन 1 ग्राम मांसपेशीगत् + प्रोवेनीसिड 1 ग्राम। अथवा सेफोटेक्सीम 1 ग्राम मांसपेशीगत ।
  • आज-कल टैक्सिम (Taxim) इंजेक्शन दिया जाता है।

आजकल इस रोग की चिकित्सा निम्न प्रकार से की जाती है-

  • प्रोकेन पेनिसिलीन 2-4 लाख यूनिट दो बराबर भागों में बांटकर आधा-आधा दोनों तरफ के कूल्हों पर एवं साथ में 1 ग्राम प्रोवेनेसिड (Probenecid) मुँह द्वारा देते हैं।
  • एम्पीसिलीन 3-5 ग्राम + प्रोबेनेसिङ 1 ग्राम मुँह द्वारा।
  • जिन्हें पेनिसिलीन से प्रतिक्रिया होती है उनमें शुरू में टेट्रासाइक्लीन 1.5 ग्राम देकर 500 मि.ग्रा. दिन में 4 बार देते हैं (10 दिन तक)।
  • सिफोटॉक्सीम 1 ग्राम I/M द्वारा।
  • मूत्रनली अवरोध के लिये शल्य चिकित्सा।

  • टेंब. कोट्राईमोक्साजोल (सेप्ट्रान) 1-1 गोली दिन में 2 बार। 7-10 दिनों तक देते हैं

    |टेब सीप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin) 500 मि ग्रा. दिन में 2 बार देते हैं।
  • सीरप एल्कासिट्रोल या अल्कासोल 5-10 मिली दिन में 3-4 बार दें।
  • सिफ्रान I/V द्वारा देकर बाद में मुँह से 500 मि. ग्रा की गोली दिन में 2 बार देते हैं।
  • गर्भावस्था में पेनिसिलीन या इरीथ्रोमाइसिन 500 मि. ग्रा दिन में 4 बार 5 दिनों तक देते हैं। नवजात शिशु (Neonates) की आँख में रोग होने पर 10% हल्के गर्म नॉर्मल सैलाइन से आँखें धोए। साथ में लोकुला 1% एल्ब्यूसिड आई ड्रॉप की 1-2 बूँदें दोनों आँखों में हर 4 घंटे पर डालें।
  • टेबलेट नॉरफ्लोक्सासिन 800 मि. ग्रा. की 1 गोली तत्काल देकर 400 मि. ग्रा. की टिकिया दिन में 2 बार 1 सप्ताह तक ।
ये ब्लॉग सिर्फ जानकारी के लिए है कोई भी दवा का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य संपर्क करे !
One thought on “13 मह्त्वपुर्ण लक्षण से लेकर इलाज तक: सूजाक के प्रबंधन के लिए एक संपूर्ण मार्गदर्शिका”

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